मेरी प्रेम कहानी
हास्य कविता
मेरी प्रेम कहानी
एक शाम , जब अंधेरा छा रहा था ,
एक पार्क से , मैं जा रहा था |
तभी देखा मैंने , लड़की एक बेठी गुमसुम सी है ,
कुछ डरी हुई , कुछ सहमी सी है ।
मैं उसके पास से गुजरा ,
और तिरछी नजरों से उसे घुरा |
लड़की थोड़ा सकपकाई ,
फिर अदा से मुस्कराई ।
देखकर उसकी मुस्कराहट , मेरा हौंसला बढ़ा ,
और हौंसले के साथ मैं भी आगे बढ़ा ।
बढ़कर आगे , उसके बगल में जा बैठा ,
और झट से इक सवाल पूछ बैठा ।
लगता हैं आप उदास है ?
उसने कहा नहीं अब तो आप पास है ।
सुनकर उतर उसका , मेरा सिर चकराया ,
थोड़ा घबराया मैं , थोड़ा शरमाया ,
फिर गौर करके उसके शब्दों पर , मैं हर्षाया |
मैंने देखा उसको , वो मुझे देख रही थी ,
उसकी आँखों में मुझे , सच्ची मुहब्बत दिख रही थी ।
फिर हम दोनो में बातों की शुरुआत हुई ,
और देखते ही देखते रात हुई ।
हम दोनों में वादे हुये , इरादे हुये ,
संग जीने - मरने के भी वादे हुये |
तभी उसने फरमाया ,
देखों चाँद आसमान में आया ।
बाते तो होती रहेंगी , पहले कुछ खाते हैं ,
मैंने कहा आप खाइये , हम खिलाते हैं ।
इक महंगें रेस्त्रा में चले हम गये ,
और इक टेबल पर जम गये ।
वो मेरे सामने थी , मैं उसके सामने था ,
वो खाने में गुल थी , मैं उसके ख्यालों में गुल था ।
उसने व्यंजनो के अपने सब अरमान निकाले ,
जब बिल लेकर आया वेटर ,मैंने होश संभाले ।
वेटर ने जो तीन हजार रुपये का बिल थमाया ,
कलेजा मेरा जार - जार रोने को आया |
मैंने पूछा भाया ,
इतना बिल कैसे लाया ?
वो बोला शाही पनीर , शाही बिरयानी खाते हो ,
फिर पूछते हो , इतना बिल कैसे लाते हो ।
सुनकर उत्तर उसका , मैने जेब संभाली ,
और पाई - पाई गिन डाली ।
फिर भी तीन हजार रू जब न जुटा पाया ,
वेटर कुटिलता से मेरी तरफ मुस्कराया ।
वेटर दौड़कर मेनेजर को बुला लाया ।
मेनेजर ने फिर खुब झड़काया ,
डराया , धमकाया ।
वाह बेटा लड़की साथ लाते हो ,
जैब में पैसे नहीं और खाना शाही खाते हो ।
लौगों का हुजूम इक्टठा हो गया ,
मेरा वँहा खड़ा रहना मुश्किल हो गया |
लोग मुझ पर हंस रहे थे ,
कहकर रोमियो , मजनूं फब्तियाँ कस रहे थे |
मुझे संकट की घड़ी दिख रही थी ,
मदद की गुंजाइश न दिख रही थी ,
देखा लड़की को तो वो भी हंस रही थी |
आखिर मैंने अपनी किमती घड़ी मैनेजर को थमाई ,
और जान अपनी वंहा से छुड़ाई ,
बाहर मेरे साथ लड़की भी आई ,
आँख दिखाई और तमतमाई |
वाह लड़की पटाने चले हो ,
एक वक्त का खाना खिला न सके और अपना बनाने चले हो ।
फिर चली गई वह अंगुठा दिखाकर ,
मैं रह गया बस तिलमिलाकर ।
फिर अचानक बात मेरे समझ में आ गई ,
बेटा गौतम लड़की तो भर पेट खाना खा गई ,
और उल्लू तुझे बना गई ।
गौतम वाशिष्ठ
शताक्षी शर्मा
28-Aug-2022 01:03 PM
Nice
Reply
Mithi . S
26-Aug-2022 01:58 PM
Nice
Reply
आँचल सोनी 'हिया'
25-Aug-2022 08:41 PM
Achha likha hai aapne 🌺🙏
Reply